रात ढली तो चाँद गया फिर जी को  जलाने
जो जानता है चाँद मेरा आज भी आया
इतराता रहता है, सितारों की संगत में
मेरी बेरुखी से बद्तमीज़ ज़रा भी घबराया
 
कहती हूँ अभी भी चला जा तू रेहम कर
मेरी दीवानों सी हालत पे अपनी रौशनी डाल
झुलसता है मेरा रोम रोम, तेरी छुवन से
कब तक मैं चुप रहूंगी, जो लोग पूछेंगे सवाल
 
अब सुबह हो रही है और तू जा भी रहा है
एक बात बता , मेरा क्या एक काम करेगा
रहता है तू आस्मां में करीब उस करामाती के
पूछ उससे कब मेरा चाँद आँगन उतरेगा
 

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