चुभता है या तो बह जाता है नैनो से काजल
की इन्हे अक्श ने तुम्हारे, जागीर बना रखा है
कभी बहकता तो कभी सम्हलता है मन का आँचल
की तुम्हारी आरजू ने जैसे इनको पंख लगा रखा है

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