मैं थी चौखट के उसी पार, जिस पार में तुम थे
आंधियों में थी मैं घिरी, मझधार में तुम थे
थी कसमकस की वो घड़ी, जिसमे मैंने लांघ ली
जिंदगी बिखरी रही पर सांसे समेटी बाँध ली
उस समुद्र मंथन परांत, विषपान भी हमने किये
जो अमृत बटा था दैत्यों को, हकदार भी तुम थे

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