मेरा होना न
होना
कहाँ रखता था
कभी मायने
तभी तो मैं
नहीं हूं
अब तुम्हारे कल का
हिस्सा
मेरा कहना या
चुप रहना
दोनों ही थे
हमेशा बेमतलब
तभी तो अब
मुझतक ही सीमित
है
मेरा हर किस्सा
जो खोया मैंने
खोया
क्योंकि
तुमने तो कभी
न की
मुझे पाने की
भी लालसा
न कोई प्रयत्न
या दिखावा तक
फिर कैसा प्रतिशोध
और क्योंकर कोई अपराधबोध
जो मिला वही
था उपहार
यथेष्ठ
अब बस एक
दूसरे पर नजर
टिकाये
चलो चलते जाए
इस प्रेम, कर्तव्य और
आकांक्षाओ
के महासंग्राम में
समय की कटार
पर
जिसमे न हो
धार की मालूम
न चलनेवाले की प्रवीणता
का अंदाज
तय है तो
बस गिरना
तो बस
चले चलो
चले चलो
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