वक़्त की किसी दरार से 
गुजरती सर्द इस बयार से 
आहटें आती है
कहानियां सुनाती है 
की बंद हैं इनकी मुट्ठी में
वो लम्हे हमारे
जो हमने साथ गुजारे 
कुछ जो हमने चखे 
कुछ अनजाने में 
हैं झांकती कही से हम सी 
दो जोड़ी सूखी सी आखें 
उम्मीद में हमारे 
की कभी तो लौटोगे 
हर पल का इंतज़ार
हर पल में वही बेबसी 
वक़्त के ग़ुलाम रूह को 
बस हक़ है तो उदासी 

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

वट सावित्री

प्रेम है