पैरो में आलता , हथेलियों पे मेहँदी
चोटी में गूंथ जूही , की मैं कबसे अकेली
दे पंख हवा आज, बेड़ियों से कर आजाद
तकदीर मेरी तू, सजा दे मेरी सहेली

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