हे
श्याम न जाओ
मुझे यु छोड़कर तट पर
कहे देती हूँ
मुड़ के आये तो शायद न पाओगे
काली जमुना मेरे
काले नैनो को निगल जाएगी
और ये शीतल चाँद
भष्म करदेगा मेरे तन को
ये हवा कर देगी
तितर बितर सबकुछ
ये भूमि चुपचाप
तमाशा देखेगी
कहती हूँ न जाओ
क्योंकि मैं न रहूंगी
लेकिन फिर भी बचूंगी
बस तुम्हारी कलपते
मन के हर कोने में
बड़ा कष्ट होगा जो
कान्हा तेरे नैन भीगेंगे
मेरे कारण
मेरे होने और न होने में
क्यों किसके लिए
ये व्यथा व्यर्थ लेते हो
अब भी पलट आओ
की तुम इस जग में
मेरे संग ही सिरोधार्य होते हो
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