बातें कही तो हैं
पर उससे कही ज्यादा
छिपाई गयी हैं
दबी ज़बान
और तेज़ साँसों में
कभी तबियत
कभी मौसम
कभी सही कभी गलत
बूझ पाने में
आरज़ूओं को चुपचाप
सौपी रिहाई गयी है
तन्हाई में मुस्कराते
है सहलाते वो ज़ख्म
झूठी कल्पनाओ में
डूबते उतराते से हम
सहेज सहेज रखते है
दिल की कोनो में वो आग
जिसने जल जल सदियो में
कर डाले रूह पे दाग
फिर भी खामोशियों में
साथी वही है
सच जानता है वो
कुछ भी बाकि नहीं है

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