शुकुन से आज
निहार लूँ
मैं अपनी इन
चलती फिरती
कहानियो
को
जो बढ़ती चली जा
रही है
कहती चली जा
रही है
नगमे जिंदगी के खुशगवार
कलम नहीं
लम्हो से सजाई
मैंने
शीत और ग्रीष्म
हर तपिश
से बचायी मैंने
सुन्दर सुघड़ इसे मैंने
गढ़ा
कोमल अनगढ़ से
तभी तो ये
रहेगी
कहेगी
सदियो ,
मेरे जाने के
बाद भी
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