कैसे मैं रहूँ
नाराज़ तुझसे
करू मैं कैसे
कभी इनकार
जब तुम्हारी नज़रे मेरे
चेहरे का
करती है पड़कर
श्रृंगार
देखकर तुमको बदलता है
मौसम इस दिल
के बागो का
बहक जाती है
साँसे
भूलती हूं मोड़
हर राहों का
जहा जब जैसे
कहोगे
वहां वैसे तभी
मिलूंगी
तुम न मानो,
पर मैं सदा
तेरी ही राह
तकूँगी
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