खिंच
गयी खिंच गयी, लकीर एक और
पड़ गयी पड़ गयी ,एक और दरार
तोड़ते गए वो दिल,और वादे भी कई
भूल गया उनको, किया अपना ही करार
खून से सने हैं हाथ और
जमीं इस पार भी उस पार भी
क्यों कांपता नहीं जमीर
हार लाजिम, हार हो या जीत कर भी
बस करो जाने भी दो
ये नफरतो के दायरे
छोटी सी ये जिंदगी
आये हैं हम किस काम रे
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