मुश्किल सी राहो से
अंजानी गलियो से
गुज़रना भला लगता है
आकर्षित करता है
इनका अपना ना होना
और खुद ही अपना बनाना
जीत का एहसास
प्रभावित करता है
तब
जब
लगता है बड़ी लंबी है उम्र
और यहाँ तो सब देख लिया है
और वापस आ जाएँगे
जब मन भर जाएगा
मन भरते भरते
वक़्त कटते कटते
भूल जाती है राह
वापस जाने की
लौट कर घर आने की
कोई जनता नही
कोई पहचानता नही
झुँड मे अपने से भटके लोगो की
भटकते हैं हम
राह ताकते हैं हम
शाम के ढल जाने की
अंधेरो मे गुम जाने की
दुआ माँगते है अब
सुबह फिर से न आने की

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