हौसले पछाड़ने को
करते हो इतनी
साज़िशें
ए मन
जरा सा कभी
मेरा भला
भी सोच लिया
होता
लगे रहते हो
दिन रात
तलासने इसमें उसमे अपना
रूप
ए मन
कभी हाथो की
तानी नसों
में शुकुन देख लिया
होता
करके विदा लबो
से जिसको
रख लिया संजो
के ताउम्र
ए मन
काश की सच
कह के वो
दामन रोक लिया
होता
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