पंख के लगा
के
यु उड़ चलता
है
मनचला
मन ये मेरा
नहीं देखता रस्ते में
कौन सा
कही का
बाँध टुटा
करता हवा को
महसूस
लबो से
मूंद करके पलके
दायरे कौन से
लम्हे मोतियों से ढलके
बढ़ चले
बढ़ चले
मिलो दूर
सदियो पर
परिंदा एक
परवान हज़ार
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