कैसा होता सुनहरा सपना
अब कहाँ
मैं कभी
ये जान पाऊँगी
की कौन सी
बात मेरी
तुमको याद रह
जाएगी
क्या हंसी वो
होगी मेरी
या होगा मेरा,
इतराना
या तुम्हे बेकरार कर
जायेगा
बेवजह, बस उलझना
मेरा आंसुओ को छिपाना
ये बता देना,
की प्यार है
या तुम्हारा ये जान
लेना
की, मुझे इंतज़ार
है
वक़्त का रेत
सा फिसल जाना
लाजमी है, कैसे
भला किसे याद
हो
लम्हो का ठहर
सा जाना
जब जब, तुम्हारा
साथ हो
बरसो की साध
और
युगों का स्नेह
अपना
न अब जान
पाऊँगी
कैसा होता सुनहरा
सपना
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