चूल्हे में जाय
ख़ुदारा
ये नाकारी मुहब्बत
की जब भी
खोले
बटुए इसने
उछाली कानी कौड़ी
लगा के इसको
कलेजे से
कितने आंसू बहाऊँ
?
की नहीं मेरे
किसी
काम की, बद्ज़ात
निगोड़ी
चल हो दफा
दुबारा दिखाओ न शक्ल
कही दिल मचल
गया
तो फिर न
रोक पाऊँगी
जल जल मरूँगी
खुद
तुझे भी इसी
में
झोंक जाउंगी
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