माफ़ कर दो
की बिन तेरे
जिया नहीं जाता
लम्हा कोई
तेरी याद बिन
कहाँ है गुज़रता
माफ़ कर दो
वैसे इसके
काबिल तो नहीं
मैं
तेरे दर्द तेरे
चैन
कही, शामिल तो नहीं
मैं
लौट आओ या
कह दो
चल पगली, बहुत हुआ
चुप रही हु
, हर पल
दिल से निकली
है दुआ
फिर से बस
एक बार
कह दो हर
शिकायत
रिश्तो के मामले
में
बनती है, इतनी
तो रियायत
माफ़ कर दो
आखिरी बार
न होगी कोई
अगली बार
Comments