मुहब्बत
वो दास्ताँ
जो कही ख़तम
न हो जाये
कॉफ़ी के प्यालो
से
सीधी, रगों में
घुल जाये
मीठे और सुलगते
लब्ज़
यु ही बिन
बात पिघलते हैं
वक़्त की दहलीज़
पे दिल के
काफिले सोते हैं
कहे अनकहे , किस्से
बेवाक बयां करते
हैं
तन्हाई में महकती
वजह
को ही इश्क़
कहते हैं
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