ज़रा और मुस्कराया करो
ज़ोर लगा के ही सही
की सिकन माथे की नहीं
गालों के गड्ढे फबते हैं
 
गहरी सासो में महसूस
कर लो हँसी, ये जिंदगी
की धागे कच्चे हो तभी
रंग पक्के चढ़ते हैं
 
धीमे धीमे सही, यु ही
थामे चलते चलो
की पाँव तनहा नहीं
तो फिर कहाँ थकते हैं

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम है

वट सावित्री