क्योंकि

या तो तुम थी , या मैं

 

जब खो गया था

ड्रेस से मैच पिन

या एडमिट कार्ड

परीक्षा वाले दिन

 

बैग की ज़िप

फिर से हुयी थी ख़राब

या मुझपर हावी था

वक़्त का दवाब

 

या तो तुम थी, या मैं

 

तुमने देखा था

और समझा था

रंगों का था

पागलपन मुझमे

 

हाथ पकड़ ले गयी

मैंने सीखा

और पाया

नया अपनापन जिसमे

 

माँ तेरे बनने से

मैंने ममता जानी

मेरे ह्रदय के शूल

 तेरे आंख का पानी

 

 या तो तुम थी या मैं

 

फिर ऐसा अरसा

कुछ निकला

तुमने जाना

मैंने सोचा

 

कैसे रेत से थे लम्हे

निकल भागे मुठी से

भाग खुद से रही थी

दूर हो गयी तुझी से

 

धूल आईने से साफ़ करते

एक दिन फिर तुमको देखा

मेरे नैनों में खिंची थी

तेरे अख़्शो की रेखा

 

फिर से एकबार

हमने मिल के जग जीता

थाम हाथ संग थिरके

पल भर में युग बीता

 

या तो तुम थी, या मैं

 

उस रात की एक बात

इस रात तक बची है

अब तो पथरो पे अपने

नाम की लकीर खींची है

 

वक़्त बीते बदले मौसम

पर कुछ तो है जो वही है

जो गलत था, गलत था

अब सही, तो सही है

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