दिल को निचोड़ती हूँ

तो टप टप गिरती है

अभी भी

फिर से उसे सीधा कर

टांग आती हूँ

बरामदे पे, की सूख ही जाए

पर ये जिद्दी बादल

बस

बरसना ही जानते हैं

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