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Showing posts from May, 2017
बच बच के इस गली से अब हम गुजरते हैं हवाएं रुख बदलती हैं दिल हम थाम लेते हैं   इधर पलटी की उधर बस ये देखते हैं हम ख़ामोशी और शिकवों से सुबह और शाम लिखते हैं
स्कूल की बस जो गयी कांच के शीशे चमकाती एक पल में चुंधियाती मुझे भी संग ले गयी   गली में यादो की बस में हंसीं ठिठोली शोर में चुहल की मैं तो आज बह गयी   इंद्रधनुष के पीछे भागते साथी संगी बरसाती में अनमने लगाते छलाँगे   एक झटके में जगे   खुद को आज में पाया सोचा , क्या वो पल एकबार क्या फिर लौट आएंगे ?