स्कूल की बस
जो गयी
कांच के शीशे
चमकाती
एक पल में
चुंधियाती
मुझे भी संग
ले गयी
गली में यादो
की
बस में हंसीं
ठिठोली
शोर में चुहल
की
मैं तो आज
बह गयी
इंद्रधनुष
के पीछे
भागते साथी संगी
बरसाती में अनमने
लगाते छलाँगे
एक झटके में
जगे
खुद को
आज में पाया
सोचा, क्या वो
पल एकबार
क्या फिर लौट
आएंगे?
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