हमें भी फज़ूल आदत रही
अल्फ़ाज़ चंद लिख कर
पन्ने फाड़ फेकने की
इस कदर आज महफ़िल में
तनहा खामोश न बैठते
जो कभी ख़ास एक नज़्म
हमने भी पूरी काश
लिख डाली होती
अल्फ़ाज़ चंद लिख कर
पन्ने फाड़ फेकने की
इस कदर आज महफ़िल में
तनहा खामोश न बैठते
जो कभी ख़ास एक नज़्म
हमने भी पूरी काश
लिख डाली होती
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