रह रह के नैनो में अब भी
दरिया कोई आता है उमड़
बादल ऐसे मायूसी के
क्यों ठहरे है घुमड़ घुमड़
तन्हाई खामोशी ऐसे
तितर बितर हो जाती है
हंसी तेरी बिजली जैसे
जब मन में कौंध के आती है
खाली खाली सूना सूना
इस आँगन का कोना कोना
तेरे वापस आने की
आहट पाने को चौकन्ना

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