पापा
क्या धूमिल हो जाएँगी स्मृतिया
यु कभी कभार बस मिलने से
क्या मर जायेगा धीरे धीरे स्नेह
न बाते करने से
क्या नहीं बचेगा प्रेम
न कोई दिलपर अब दस्तक होगी
मरने से पहले ही क्या
अपने कांधे अपनी अर्थी होगी ?
हो जायेगा विकलाँग ह्रदय
हाथ पाँव कटने जैसा
क्या नहीं बहेंगे अश्रुधार
घावों सा रिसता, रिश्ता कैसा?
क्या ऐसा भी  होगा अनर्थ
होंगे भूत प्रेत से बदतर हम
हे प्रभो दया कर हर लेना
तब प्राण भी अपने तुम

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