हम तो जीवन के पोटली में
प्रेम के टुकड़े बाँधने को
निकल पड़े, जी निकल पड़े
अब कोई भी कुछ भी बोले
क्या मुश्किल होl
कोई क्या सोचे
निकल पड़े, जी निकल पड़े
उम्मीद नहीं कोई आस नहीं
इस दरिया में अब प्यास नहीं
बस एक राह सीधी घर को
हम न ठिठके , अब चल पड़े
अब सिचेंगे अब बरसेंगे
अब आँगन आँगन थिरकेंगे
अब मुस्काने, अब दीवाने
मन की करने विकल बड़े
प्रेम के टुकड़े बाँधने को
निकल पड़े, जी निकल पड़े
अब कोई भी कुछ भी बोले
क्या मुश्किल होl
कोई क्या सोचे
निकल पड़े, जी निकल पड़े
उम्मीद नहीं कोई आस नहीं
इस दरिया में अब प्यास नहीं
बस एक राह सीधी घर को
हम न ठिठके , अब चल पड़े
अब सिचेंगे अब बरसेंगे
अब आँगन आँगन थिरकेंगे
अब मुस्काने, अब दीवाने
मन की करने विकल बड़े
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