आज इन कुहासे के मौसमों में
जहाँ न धूप उगती है
न ही हो जाता है घुप्प अँधेरा
जैसे जवाबो के इंतज़ार में
बैठे है  टकटकी लगाए
और नहीं मिलता अंदेसा
की निखरे या बिखरे?
मिट्टी गर्भ में धारण किये
बीज
कोपले सकपकायी सी
भ्रमित
सखी, बस ऐसे ही कुछ
तुम भी
मैं भी

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