शिव रात्रि है आज , सोशल मीडिया पे बहुत सारे सन्देश आ रहे हैं पिछले कई दिनों से. मैंने आज व्रत नहीं रखा , पिछले कई सालो से नहीं किया. घर पर शिवलिंग है, कभी किसी ने उपहार दिया था.हर रोज़ उसपर जल भी नहीं चढ़ता।क्या शिव क्रोधित हो जायेंगे मुझपर? क्या मैं भयभीत हो जाऊं और शीघ्र क्षमा प्रार्थना करून? आज महा शिवरात्रि है, शायद क्षमा मिल भी जाये. पर बात ये भी तो है की कही दिन ग्लानि में व्यर्थ ही न हो जाये. क्यों न मैं ये समय शिव चिंतन में ही लगा दूँ। जो मुझे जानते हैं उन्हें स्वतः ही ये ज्ञान हो गया होगा की मैं कदापि क्षमा ग्लानि और शोक में एक क्षण भी न व्यर्थ करू. जीवन अति बहुमूल्य है और शिव सर्वत्र विद्यमान अंतर्यामी और सर्वद्रष्टा। तो फिर शिव क्या है?मेरे शिव हैं , मेरे अंदर समाहित सदैव रहने वाले आत्मिक ऊर्जा के कण. दुःख शोक और अपमान में कोलाहल करने की क्षमता और भय के परे रख विनाश कर के नव निर्माण प्रसस्त करने का आश्वाशन हैं शिव. नृत्य संगीत में अभिवयक्ति ढूँढ़ते , कंठ में विष को समेटे , सर्प और भूत प्रेतों को भी मित्रता का पात्र मान ग्रहण करते , रहते हैं शिव. शिव के तत्वों का मोह तो नहीं परन्तु सती के प्रेम विरह से ब्रह्माण्ड को शोकाकुल करने में जिन्हे संकोच नहीं , सत्य के स्वरुप है मेरे शिव.
प्रेम - तलाश ख़त्म
"गोरे बदन पे, उंगली से मेरा , नाम अदा लिखना " - गुलज़ार किसने लिखा , किसने पढ़ा और किसने समझा? अब कौन माथापच्ची करे इसमें। हम तो बस श्रेया घोषाल के अंदाज पर कुर्बान हो लिए और यकीं भी कर लिया की "रातें बुझाने तुम आ गए हो". प्रेम - तलाश ख़त्म . आज बड़े दिन बाद, इस कड़ी में एक और जोड़ देने का मन हो चला है. क्यों? ऐसी कोई वजह नहीं है मेरे पास आज देने को. और आपको भी, आम खाने से मतलब होना चाहिए न की पेड़ गिनने से. पिछले साल की मई के बाद , नहीं लिख पायी थी कोई और कड़ी. जैसे जंजीरो से ही रिश्ता तोड़ लिया हो मैंने. लेकिन अब ऐसा लगता है, मेरे अनदेखे कर भी देने से ये जंजीरे मुझे अकेला नहीं छोड़ेंगी. और फिर ये ख्याल आया की इंसान जंजीरो में पड़े रहने को ही तो कही प्रेम नहीं कहता हैं? न, जंजीर खुद प्रेम नहीं होता पर हमारी तीब्र आकांक्षा किसी न किसी जंजीर में बंधे रहने की और बाँध लेने की, कई बार प्रेम कहलायी चली जाती है. हाँ, अब ये भी सच है की बिना प्रेम किसी को बाँध लेना, या बंध जाना संभव भी नहीं. लेकिन बस बंधे रहना भी तो प्रेम का हासिल नहीं। प्रेम, प्रतिष्ठा और प...
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