रंगमंच ये 
रंगमंच है 
पर्दा उठता है 
गिरता है 
कौन लिखता है , 
कौन जाने 
कौन देखता है, 
कौन जाने 
बस आते 
और जाते हैं 
किरदार 
एक से बढ़ 
एक कलाकार 
किसी को पता है 
उसका पात्र 
किसी को नहीं 
कोई नक़ल कर कर के ही 
निभा जाता है 
तो कोई टिक कर 
अपनाता है 
कभी यु भी होता है 
की कोई, मंच से 
भाग खड़ा होता है 
रंगमंच है, ये रंगमच 
तमाषा तो बस 
चलता ही रहता है 
किरदार नए 
या पुराने 
कौन देखता है 
कौन जाने

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