चटक चटक और
चनक चनक कर
कांच की बरनी
चलेगी कब तक
साट साट कर
जोड़ जाड़ कर
कांच की बरनी
चलेगी कब तक
रंग पेंट
सब पोत पात कर
झूठ साँच अब
बोल बाल कर
सुख सुविधा को
तोल ताल कर
हर ख्वाहिश को
कल पे टाल कर
सपनो को बटुए से
अब खंगाल कर
कांच की बरनी
कांच की बरनी
आखिर कब तक?

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