सखी तुम भी?
समझ बैठी की
अब मैं व्यस्त हूँ
की बस हंस हंस
के मौसम  का
बखान भर करुँगी
‘कह और कह’
हरेक लब्ज़ के
इर्द गिर्द रखूंगी
तू तो न कह वो मुझसे
जो कहते सभी हैं
तू तो जान ले कहानी
जो मन में कही दबी है
यु हर बार कहके ”बढ़िया ”
क्यों धकेलती हो मुझको
अपने आप से अंजाना
क्यों बनाती हो मुझको
ये है कौन सी बिमारी
या कोई दौरा पड़ा है
बढ़ती दूरियों से मेरा
ह्रदय विचलित बड़ा है

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