किसका प्यार?
कैसा निवेदन?
कैसी बेड़िया
और किस बात का डर

नहीं बाँध के रखना किसी को
और ना ही बैठना अंधेरो में
की टटोलना और माँगना पड़े साथ
रौशनी कब आयी, टटोलकर हाथ

सूरज स्वयं आता है ले प्रभात
बर्षा स्वतः होती है
प्रेम भी
अब नहीं, तो न ही सही

भय भटक जाने का कैसा
आखिर कौन जानता है
कौन सी राह सही या नहीं?

आत्मा का अनुसरण
और अभिवक्ति का दीप
कर्मो की गति पैरो में
बहन, फिर घर तो सब को
पहुंच ही जाना है

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री