आवाहन की उमंग या विसर्जन का रोमांच? महिषासुर मर्दिनी के उच्चारण से अनायास ही रोम रोम में भर जाने वाली ऊर्जा या पंडालों की आप धापी में खो जाना खुद को ? माँ की सौ हिदायते पूजा की थाली को सजाने में या दोस्तों की लाखो मनुहार रात रात भर घूमने की? अगरबत्ती और दिए की खुशबु या राजू के फुचके का स्वाद ?

मैं नहीं जानती, इनमे से मैं कौन हूँ और कौन नहीं.

दुर्गा पूजा और मेरा घर, बरसो बाद भी मेरे अंदर उतनी ही तीब्रता से रचा बसा है जितना तब था. वरना , क्यों ये लिखते लिखते मेरे गले में गोले बन जाते और बिना वजह आखर पर धुंध फ़ैल जाती.

माँ सर्वत्र है और वैसे ही है हमारा माँ के लिए स्नेह, सदैव. बस वही हूँ मैं.

शारदियो सुभेच्छा।

दुर्गे दुर्गे 

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