दिवाली

क्युकी दिवाली रोज़ नहीं होती
जलाकर दिए देहरी पर
राह अपनों की ताके
न जो कोई आये
करके मिन्नत बुलाये 
क्युकी दिवाली रोज़ नहीं होती
चलो खुल के जी ले
हो रोशन खुशियों से चेहरे
न गम न अँधेरा
इस घर पे ठहरे
तोड़ के जंजीरे और मन के पहरे
क्युकी दिवाली रोज़ नहीं होती
सपनो और कल्पनाओ
की रंगोली रचाओ
मन का हर कोना
हर आँगन सजाओ
जगमगाओ और बरसो
झहर महर , झहर झहर
क्युकी दिवाली रोज़ नहीं होती

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

प्रेम - तलाश ख़त्म

वट सावित्री