तन्हाई खाये खाये जाती है
फिर भी महफ़िल और मेले हैं
कितने संगी कितने साथी
सब अपने, फिर भी अकेले हैं
छोड़ कर जो आँचल उड़ चले
जो घोंसले से हैं मुड़ चले
खोये खोये ये सारे दीवाने
अब ख़ामोशी से हैं जुड़ चले
पैमानों में चेहरे दीखते हैं
खाली हैं रूह से, बिकते हैं
चिकनी गेहूं के पिसे हुए
अब हर तवे पर सिकते हैं
जब होती है कोई तड़प कहीं
मुँह ढाँप के हम रो लेते हैं
सपनो को रख कर सिरहाने
ले नशे के दम , सो लेते हैं
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