एक लम्बी कहानी और
एक किस्सा किताबी सा
एक रात तनछुई सी और
एक चाँद नवाबी सा
जहाँ जब सो जाये, वो
बरसाता रात पे अपना नूर
हौले से बढ़ती, और
सोखती, रात बड़ी मगरूर
चाँद बलाये ले ले घटता बढ़ता
रहे कही यु ठिठका सा
काली रात घनेरी , थिरके
लगा चाँद का चस्का सा
रात तुझे तो जाना होगा ,
दिन धरती को प्यारा जो
चाँद मिन्नतें कर थक हारा,
सूरज से बेचारा वो
रवां इश्क़  ये जवां इश्क़,
है रात चाँद तेरा साथी
टुक टुक ताके बैठे तारे,
बनेगे कब ये बाराती


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