जो ह्रदय छलनी हुआ है
अग्नि की बौछार से
वो ह्रदय भी सेंकता था
सर्दिया, अंगार से
जो ह्रदय होकर के पथ्थर
फूंक आया जिंदगी
वो भी कभी फट पड़ा था
रुदन की पुकार पे
तेरा ह्रदय मेरा ह्रदय
तेरा रुधिर मेरा रुधिर
एक जैसी धमनियाँ हैं
एक जैसी है गति
प्रेम और सन्मान की
कर लड़ाई स्वयं से
कभी नहीं बसा चमन
कही घोंसले उजाड़ के
हम खिलौने से न जाने
किसकी कठपुतली बने हैं
मन के सन्नाटो से पूछो
शोर ये किसके भरे हैं
जिंदगी है तो हसीं है
ये नहीं तो कुछ नहीं
जिसने खोयी वो ही जाने
कितनी जी थी, या नहीं
गुजर जाती है अँधियाँ
छोड़ कर उजड़े चमन
बन बहो ठंढी बयारें
इस धरा से उस गगन
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