आखिरकार मैंने लकीरों के आगे घुटने टेक दिए और अपनी सरहदें बना ली. कितनी बार आख़िर मेरे बचपन दोस्त, पडोसी और घरवाले तक मुझे समझाते रहेंगे की "तुम क्या जानो, तुम यहाँ नहीं रहती". हाँ, अब मेरा देश यही है.
कभी रूह से और कभी देह से तुम बुला लेना और बता देना की प्रेम है कभी रूठकर और कभी बहल कर सता लेना और हंसा देना की प्रेम है कभी पास रहकर कभी दूर जा कर दिखा देना और देख लेना की प्रेम है हूँ जिन्दा की मुर्दा कौन कहे देखकर बस जान लेना की सांस है तो प्रेम है
गए होंगे मथुरा नगरपति गोकुल, किसी अंधियारी रात में सुनसान तट पर, खोजने किसी को किसने देखा और किसने जाना सबने सुने हैं राधा के प्रेम के किस्से पन्ने रंगे हैं , बनी अनगिनत तस्वीरे हुयी रासलीला, और नटखट प्रसंगे मगर बड़े इत्मिनान से, देकर दुहाई कर्मो की ताज पहन सर पर, छोड़ बंसरी व्रिज की चले गए थे तुम, मुड़कर देखा जो होगा किसने देखा और किसने जाना राधा बिचारी रही वही पर वही की बैठी भी डोली वो थी किसी और की राह हर पल तुम्हारी देखी तो होगी वचन भी लिया होगा, किसी भी मोड़ पर हाथ जो तुमने थामा, चल दूंगी सब छोड़ कर इन छोटी सी बातो में रखा ही क्या था तुम्हे थो बनानी थी महाभारत द्वारका तुम्हारी और रुक्मिणी तुम्हारी जब सब थे प्रभो, तुम्हारी इच्छा से क्या नहीं होती तुम्हारी कहानी बिना उसके विरह के हाँ, प्रेम कहते हो की तुम्हे भी था किसने देखा और किसने जाना
Howrah Station - Early morning Originally uploaded by grantaustralia हर रोज़ जिंदगी इतनी हँसी कहाँ होती है हर रोज कहाँ दिखती है इतनी सुंदरता कब ढलता सूरज बस आहट ना होकर आँधिया रे की लगता है रंग बिखेरता पिचकारी की हर रोज कहाँ आती है हँसी इन होत्ठो पर सोचकर कोई पुरानी बात या करके उसको याद कभी कभी ही बस दिल करता है जी भर जी लेने को आज वही दिन है तो जीने दो जीभर के
Comments