December 25, 2018

माधवी, यही तो नाम बयाता  था उसने.

दिमाग में सोचते हुए गाड़ी को घर की  तरफ घुमाया। मेरा  छोटा बेटा किंडरगार्टन  में हैं. आज उसे  स्कूल से  लेने गयी तो किसी ने पीछे से पुकारा.

यू आर प्रोकेट मॉम ?

आवाज़ सुनकर पलटी तो चौंक गयी.  मेरी उम्मीद से थोड़ी अलग एक इंडियन माँ अपनी एक मीठी सी मुस्कान  लिए मेरे उत्तर की प्रतीक्षा कर रही थी.

यस. एंड?

ओह, आई एम् रॉकी मॉम.माधवी।  ही वास् टॉकिंग अबाउट प्रोकेट। सेम क्लास।  दे लाइक टू प्ले टुगेदर।

उसकी एक्सेंट से उसका रंग मेल  नहीं खा रहा था पर उसकी आँखों की सचाई साफ़ चेहरे पे झलक रही थी.

बस कुछ ऐसे ही  मिले थे हम पहली बार. पता चला वो पास ही रहती है और उसकी जिंदगी बस अपने बच्चो और पति के ही इर्द गिर्द  ही घुमा करती है. फिर  मिलना जुलना  लगा रहा, छोटा सा  है ये हमारा शहर . कभी कोई  सोच  भी नहीं पाता की यहाँ कुछ खो भी सकता है.

यूँ ही, कभी स्काउट की मीटिंग तो कभी कुंमोन की क्लास के बाहर। अपने कलेजे के टुकड़े, बिटिया गिन्नी को लिए यदा कदा टकराया करती थी वो.
कुछ और वक़्त गुजरा और कुछ और क्लास की माँ सब भी मिली , जाहिर सी  बात थी की  व्हाट्सप्प ग्रुप भी बना. उसका नाम कारन माधवी ने किया "कैम्पबेलस हॉटेस्ट मॉम ". यूं तो माधवी हमेशा साधारण से लिबास में अपने भारी शरीर को ढके मिलती थी, एक दिन की बात कुछ  अभी भी जहन में अटकी सी है.
उसने बालो को कलर कराया था, बड़ी  प्यारी लग रही  थी ब्लू लाइनर लगाकर. उस दिन देखा गौर से शायद पहली बार, उसके गहरे आँखों को और उसकी खिलखिलाती हंसी को भी. पर अब उस बात को ३ साल होने को आये।
पिच्छले कुछ दिनों से मिलना हुआ... वो शाम में कम ही मिलती थी और हमारे बच्चे भी शायद  कुछ अलग अलग शौक पालने लगे थे. और, यहाँ तो हमारे जीवन की धुरी बच्चो के  साथ ही घूमती है.
इस साल भी मेरा परिवार बड़ी सिद्दत से जाडो की छुट्टियों का इंतज़ार कर रहा था. क्यों न हो, हम सब अपने करीबी दोस्त के घर जाने वाले थे कैलिफोर्निआ की वादियों में. २४ तारीख को मेरा जन्मदिन था, और मेरा मन हमेशा की तरह इस  उहापोह में की लो  एक और साल गया. दिन अच्छा बीता, और अगले ही दिन हम सब  बड़ी ख़ास रोड ट्रिप पे निकले. क्रिसमस का दिन, और खुबसूरत नजारो में मन कही भटका सा था जब व्हाट्सप्प  वह मैसेज आया.

हेमा ने लिखा था... माधवी नहीं रही. नींद में उसने हम सब से विदा ले ली।

सांस रुक सी  गयी,मेरे पास बैठी पूनम ने मेरा सफ़ेद चेहरा देखा और फिर  मैसेज... मेरा बेटा प्राकेत भी वही था.
गाड़ी रोकी , किसी तरह कुछ सांस भरी.

और फिर निकल पड़े.. नहीं जानती , क्यों और कहाँ चले से जा रहे हैं हम सब. क्या मतलब है इन सब का.

उसकी तीन साल की परछाई को कल देख कर आयी  हूँ और साथ ही उसके पिता  को , जिनकी थकी से आँखे बिलकुल माधवी सी ही चमकती है.

 अपराधी बोध जैसा है की वही  क्यों?  कैसे?सवाल कई है लेकिन जवाब मायने नहीं रखता क्युकी कठोर  यथार्थ यही  है हमारे  सामने की कुछ नहीं ठहरता किसी  के लिए। ... बस हम तजुर्बे इकठे कर सकते हैं और  कभी कभी उन्हें आईने सा देख सकते है.

Comments

Blog said…
Wow Prabha too good ya.

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