यूं ही ज़रा सा 
बहकने लगे थे 
खुश्बुओ में तेरे 
महकने लगे थे 
खिलने लगी थी 
फिर दिल में कलिया 
तेरी चाहतो  की 
अनगिनत तितलियाँ 
बेचैन कर के मुझे 
वो जाना तुम्हारा 
न आवाज देकर 
बुलाना वो मेरा 
ये कैसी खलिश है 
ये कैसा जूनून है 
न होकर भी हर 
पल में होना तेरा 

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