क्यों जी

क्यों जी
कुछ बोलते क्यों नहीं
क्या?
वही
पता ही तो है

बारिश की बूंदो में
लिपटा मन
और क्या ?
तुम्हारी उंगलियों से
उलझे धागे
सुलझाना चाहता है
बस.

बोलो न
उन लम्बी सड़को पर
अंधेरो के बाद
मेरे साथ आओगे?

और जब सड़के
ख़तम हो जाएँगी
तब?

पटरियों पर
लड़खड़ाते मेरे
कदमो को
क्या दीवाना कहोगे?

या मेरी ही
दीवानगी में
संग चल पड़ोगे
न, करोगे कभी बात
पलटने की

बिजलियाँ
बारिशे बुँदे
पियोगे मेरे
होठ से, होठ पे

कभी तो लब खुलेंगे?
या नहीं
क्यों जी?

Comments

Popular posts from this blog

प्रेम है

Howrah Station - Early morning