बड़े  ज़ालिम हुआ करते है
वो
जो जूनून पाल कर खुद ही
अपनी नींदे आप ही
हराम करते हैं

सच
 ज़ुल्म ही तो है
जो ज़माने भर की
जंजीरे में जकड़े भी
मुहब्बत की
जरा सी आरजू में ही
सुबह से शाम करते हैं

उफ़
खुदा, खौफ करे इन से
की इन्हे न तो मौत का है डर
ख्वाहिश की नुमाईश ये
सरे आम करते हैं

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