क्या मैं धुप में पाऊँगी सम्हल

क्या कभी ऐसा सोचा  भी था ?
क्या कभी यु हुआ था शुमार ?
ऐसे बादलो से रंग बरस पड़ेंगे 
और फिर न टूटेगा खुमार 

ऐसे सिलसिला कही का कही 
लेके जायेगा हमको साथ साथ 
 ख्वाब और हकीकत के बीच 
बिखरे बिखरे से होंगे जज़्बात 

जी तो करता है आके चूम लू 
फिर ये डरता है ,अगले ही पल 
कही बारिशे तभी जो थम गयी 
क्या  मैं धुप में पाऊँगी सम्हल 

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