न मंजिले खबर रखती हैं
न राहो को पड़ी है
की अगुवाई करे वो
सफर का तुम्हारे
कदम ये तुम्हारे
जिधर ले चले
चले जाना, और क्या पता
इक गलत मोड़ ही
खड़ा होगा तुम्हारा
कोई, सही हमसफ़र
जो कह दे वो चलने
या चल दे पीछे पीछे
और दिल उलझ सा गया हो
तो आने देना
क्युकी,न राह की कमी है
न मंजिलो की कोई हद हैं
सफर ये एक तेरे और तेरे
इस हमसफ़र भर की है
न राहो को पड़ी है
की अगुवाई करे वो
सफर का तुम्हारे
कदम ये तुम्हारे
जिधर ले चले
चले जाना, और क्या पता
इक गलत मोड़ ही
खड़ा होगा तुम्हारा
कोई, सही हमसफ़र
जो कह दे वो चलने
या चल दे पीछे पीछे
और दिल उलझ सा गया हो
तो आने देना
क्युकी,न राह की कमी है
न मंजिलो की कोई हद हैं
सफर ये एक तेरे और तेरे
इस हमसफ़र भर की है
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