सुबह से शाम कर ले

कहो तो भला, दूर कितना आये हैं? 
और कितना सफर है यु ही साथ में 
कुछ वक़्त तो अभी गुज़रा लगता सा है 
ऐसा हल्का सा, आया क्या हाथ हाथ में ?

क्या हम यु ही दूर तक चलते रहेंगे ?
क्या हमको नहीं कोई रोके-टोकेगा?
हवा बारिश बिजली धुप सर्दी का झोका 
क्या थपकियो जैसे बस सहला जायेगा? 

क्या तुम और मैं ऐसे गुमनाम साये से 
करते करते ठिठोली, जीतेंगे हर बाज़ी?
क्या तुम न पूछोगे? क्या हम न चाहेंगे ?
कभी हमने कही ठान ली कोई मनमर्ज़ी? 

बोलो न कभी क्या ऐसा न होगा ?
कहकर जहाँ से , तुम्हे अपना कर ले ?
न मैं मुड़  के देखु , न तुम अश्क़ रोको 
तेरे बाजुओं में , ख्वाहिशे तमाम कर ले 
मेरे चाहतो  में, सुबह से शाम कर ले  

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