एक ही पल में भला कैसे
कुहासा घुल गया
चाँद वो अब आसमान से 
बूँद बन झरने लगा

लगी कैसे दौड़ने
इतनी बिजलिया एक संग
किसने की आजाद देखो 
तितलियाँ हर एक रंग

ऐसा सुना था, पढ़ा भी था
पर पहेली सी ही थी
किसकी बातो भर से अब
एक हिरनिया, कस्तूरी हुयी

धड़कनो में अफरा तफरी
नदारत नींद भी अब नैन से
किस तरह मैं ठहर जाऊं
इस पल में, अब बस चैन से

रोक लूँ सब कुछ
एक पल भी पलक झपकाऊँ न
ये गया की वो गया
कही लम्हा ये खो जाये न

लो कह दिया हमने जो कहना था
सुनो या न सुनो
कल की चिंता किसको अब
मैंने तो अपनी जी सी ली 

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