कहने को सावन
बादल नहीं कोई
बस वही दो बरसी
जो अँखियाँ न सोई
न बदले ये मौसम
बस आये रुत जाए
मुई मन का कलेश
ये ठहरी काली घटाएं
जाने कितने जतन से
जो थी जन्मो पिरोयी
टूटी माला के मोती
अब मैं चुन चुन के हारी
न पूछो मुझसे बतिया
जानू तेरी ठिठोली
तू वो न हो सका मेरा
जो मैं पल भर में हो ली
बादल नहीं कोई
बस वही दो बरसी
जो अँखियाँ न सोई
न बदले ये मौसम
बस आये रुत जाए
मुई मन का कलेश
ये ठहरी काली घटाएं
जाने कितने जतन से
जो थी जन्मो पिरोयी
टूटी माला के मोती
अब मैं चुन चुन के हारी
न पूछो मुझसे बतिया
जानू तेरी ठिठोली
तू वो न हो सका मेरा
जो मैं पल भर में हो ली
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