इन पर्वतों के दायरों में 
खुली वादियों की बाहों में 
शुकुन से रह लेने दो 
जी भर के रो लेने दो 

तरसने दो दिल की आहों को 
बरसने दो अब निगाहों को 
रूठ , टूट , छूट जाने दो 
इन बेगानी सी पनाहों को 

लबो पे मुस्कराहट हो 
पर आँखों में ठहरी सी नमी 
भर जाए तमाम जन्नते यहाँ 
दिल में हो ज़रा सी फिर भी कमी 

खुद से गैर, हो के 
लगे गैर के गले चलो 
सच था, या सपना 
किसको पता? तुम्ही बोलो 

Comments

Popular posts from this blog

मर्यादा

वट सावित्री

प्रेम है