सपने जो ज़रा से
कोने में ,पड़े होते हैं
रोजमर्रा की भाग में
अनसुने से, धरे होते हैं

टकटकी लगाए
बाट तकते हैं फिर भी
होने को कभी पूरे
सांसे लेते हैं फिर भी

सुना है, ज्यादातर वैसे
घुट कर मर जाया करते है
अंधेरो में , अर्सो पर
सड़ जाया करते हैं

चिताये भी उनकी कही
नहीं कोई सजाता  है
जिंदगी यु ही कटती है
हर लम्हा यु जाया है

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